मनाशी हसते
गुपित सांगते।
मनिचे ऐकते
पर्वा न करते।
बेधुंद होऊनी
मस्त विहरते।
मधमाशीसम
होते मधुमय।
भ्रमर होऊनी
होते प्रेममय।
हेच तर स्वप्न
असते सतीचे।
दान नशिबाचे
उलटे पडते।
सदेह जळणे
नशिबात येते।
बेचिराख होते
साथ निभवते
सात फेऱ्यांची
पूर्तता करते।
सगळा आकांत
मनी साठवते।
देवीची मग ती
प्रतिमा बनते।
कुठे मधमाशी?
कुठे तो भ्रमर?
सगळी गिधाडे
आहे सभोवर।